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Cinema Hindustani

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सिनेमा पर सर्वोत्‍तम लेखन के लिए नेशनल अवार्ड से सम्मानित सुनील मिश्र जी ने इस पुस्तक सिनेमा हिन्दुस्तानी के बारे में लेखक ज्ञानेश उपाध्याय को जो पत्र लिखा, वह शब्दश: पेश है – ‘पत्रकारिता के लंबे अनुभवों में सिनेमा पर केंद्रित करते हुए आपने जो भाषा स्वभाव विकसित किया है, उस पर पूरी किताब सधी हुई है। आपने सिनेमा पर बात करते हुए, कलाकारों और परिदृश्य में सिनेमा सर्जकों के योगदान तथा दर्शक के मानस को रेखांकित करते हुए जिस प्रकार देशकाल, वातावरण, राजनीति, राजनैतिक लोगों को भी साथ रखा है, वह आपकी भाषा है, जिससे मुक्‍त आप हो नहीं सकते थे। इस किताब को तैयार करते हुए विचार और सिद्धान्त की धाराओं को भी आपने उल्लेखित किया है। जनमानस की वैचारिकी एवं विभाजन को भी सिनेमा के बिम्बों-प्रतिबिम्बों में महसूस करते हुए ठीक-ठीक जगह पर चिन्हित किया है। मुझे एक सबसे अच्छी बात यह लगी है कि आपने केन्द्रीयता में एक स्थूल सा विषय चुनते हुए भी अपने आपको भावुक होने से बचाया है। पाठक भी क्यों न जाने सिनेमा के साथ-साथ देशकाल और दशा-दुर्दशा को, जो हमारे आस-पास व्याप्‍त रही है और हम सभी लाइलाज गिरावट पर हाहाकार मचाते आज तक चले आए हैं। दिलचस्प यह है कि न उधर कुछ बदला, न प्रतिवाद का स्वर बदला। नोक के सामने नोक तो है ही।’

भारतीय सिनेमा में अनगिनत सितारे हैं। उनमें से पाँच बुनियादी सितारों पर अध्ययन का प्रयास किया गया है। जिस नजरिये से आप दिलीप कुमार को देखेंगे, ठीक वही नजरिया राजेश खन्ना को देखने का नहीं होगा। यह पाँच सितारों – राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की कला, प्रभाव व लोकप्रियता का विस्तृत अध्ययन है। यह किताब हिन्दी सिनेमा के पूरे सौ साल को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है।

पत्रकारिता में 27 वर्ष से सक्रिय ज्ञानेश उपाध्याय इन दिनों राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दैनिक हिन्दुस्तान में कार्यरत हैं।

Weight 0.450 kg
Dimensions 21.5 × 13.8 × 1.8 cm
Author

Gyanesh Upadhyay

Paperback

406 Pages

ISBN-10

9355151586

ISBN-13

978-9355151582

2 reviews for Cinema Hindustani

  1. Ramsharan Joshi

    ज्ञानेश जी की पुस्तक सिनेमा की खालिस दास्तान नहीं है, समय का बदलता मिज़ाज़ और राज्य की राजनीतिक आर्थिकी की बदलती झलकें भी इसमें हैं। आम तौर पर हिंदी के लेखक सिनेमा को एकांगी नज़र से देखते हैं। इस लेखक ने ऐसा नहीं किया है। एक critical approach से देखा है।
    इसलिए सिनेमा हिंदुस्तानी को पढ़ा जाना चाहिए। इस अभिनव कदम के लिए बधाई!
    -Dr. Ramsharan Joshi senior journalist and social scientist

  2. Prayag Shukla

    ज्ञानेश पत्रकारिता के मूल्य-महत्व को बहुत अच्छी तरह पहचानते हैं। साहित्य और कलाओं में उनकी गहरी रुचि है। दो दिन पहले वाली शाम ज्ञानेश अपनी नयी पुस्तक ‘सिनेमा हिन्दुस्तानी’ लेकर
    आए। इसे पाकर बड़ी खुशी हुई। इसमें उनके बहुत सुन्दर, सहज ,पर, बहुत सोचे –विचारे लेख हैं, दिलीप कुमार, देवानंद , राजकपूर, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन पर। रूचिकर । हमने यह याद किया कि किस तरह पिछले कुछ दशकों में हिंदी के कई लेखकों –कवियों ने भी सिनेमा पर सरस और गंभीर लेखन किया है. साहित्य की दुनिया मे बॉलीवुड हो या विश्व सिनेमा, इनके महत्व पर अधिक ध्यान दिया गया है–दिया जाना चाहिए भी।
    -Prayag Shukla, Poet, Painter, Art critic

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